Menu
blogid : 23522 postid : 1136311

छात्रों की नीति में यें कैसीं राजनीति ?

हालात की चाल ।
हालात की चाल ।
  • 25 Posts
  • 7 Comments

हमारा देश जिसके लिये कहा जाता हैं कि इस देश की आधी से से ज्यादा आबादी युवा हैं ऐसे में देश मे इस समय युवा के साथ जिस तरह का व्यवहार हो रहा हैं, वे वाकई चिन्ता का विषय हैं । देश के शिक्षण संस्थाओ मे छात्रों की आत्महत्या पर जिस तरह सियासत हो रहीं हैं, उससे देश को एक बार फिर सोचना चाहिए कि इस तरह के संवेदनशील पर मुद्दे पर राजनीति कितनी सहीं हैं ? छात्रों के लिए धर्म,जाति व मजहब के नाम का प्रयोग कर सब आपनी सियासी रोटी सेंकने मे व्यस्त हैं और एक बार फिर आपनी महत्वकांक्षा को पूरा करने पर लग गए हैं पर छात्रों की वास्तविक समस्या का कोई जिक्र नही कर रहा हैं । सभी सियासी पार्टियों ने इसे एक छात्र की आत्महत्या के रुप मे पेश न करके इसे एक दलित छात्र की आत्महत्या मे परिवर्तित कर छात्र की वास्तविक समस्या से आपना मुँह मोङने का प्रयास करते दिख रहे हैं । पार्टियों ने इस मुद्दे को अपनी सुविधा अनुसार दलित और ओबीसी के बीच उलछाकर रख दिया हैं । कोई भी छात्र की समस्या का जिक्र नहीं कर रहा हैं कि उसे किस तरह अपनी शोध की राशि मिलने मे समस्याओं का सामना करना पङ रहा था । सभी पार्टियां अपनी सियासत करने में इतनी व्यस्त हैं कि उन्होनें इस मुद्दे को छात्र की समस्या के रुप मे न देखकर अपने वोट बैंक के कारण इस मुद्दे से अपना वोट बैंक तैयार करने मे लगीं हैं । जब कोई छात्र आत्महत्या करता हैं और अगर वे किसी जाति विशेष या समुदाय से हैं तो उसकी आत्महत्या पर सब आगे बढ कर विरोध करते हैं क्योकि वहाँ उन्हें अपनी राजनीति चमकाने का अवसर दिखने लगता हैं पर अगर वही छात्र आत्महत्या से पहले शिक्षण संस्थान की कमियों को उजागर करता हैं तो उस पर किसी का ध्यान नहीं जाता हैं । उस समय शायद वे मुद्दा उनका वोट बैंक चमकाने का काम नहीं करता हैं इसीलिये पार्टियां इस मुद्दे पर ध्यान है नही देती हैं । छात्र की आत्महत्या से जिस तरह विश्वविधालय की कमियां उजागर हुई हैं उससे शिक्षा व्यवस्था पर एक बार फिर गम्भीर सवाल खङे हो गए हैं साथ ही सवाल उन सभी लोगों पर उठने लगे हैं जो इस समय अपने को छात्रों का मसीहा के रुप में पेश करने की कोशिश कर रहे हैं । सवाल उन सब लोगो से पूछा जाना चाहिए कि तब वे लोग कहाँ थे ,जब छात्र को हाँस्टल से निकाला गया था ? तब कहाँ थे जब छात्र को शोध की राशि मिलने में समस्या हो रहीं थी ? छात्रों के हित मे बात करने वाली ये सारी पार्टियां वोट के लिए चुनाव में बङी – बङी और छात्र हित की बातें करती हैं और अपने को छात्रों का सबसे बङा हितैषी साबित करने में लग जाती हैं ।चुनाव के समय विश्वविधालय का शिलान्यास किया जाता हैं परन्तु चुनाव के बाद ये पार्टियां छात्रों को भूल जाती हैं और विश्वविधालय तो बेचारे छात्रों की बाद में पहलें तो ईंट, पत्थरों का ही इंतजार करते रह जाते हैं कि कब उनका निर्माण पूरा होगा और कब वे छात्रों द्वारा प्रयोग में लाये जाएगें । छात्रों को रोजगार देने की बात करने वाली ये पार्टियां छात्रों को रोजगार तो दूर उनके साथ और उनकी योग्यता के साथ भी उचित व्यवहार नहीं करतीं हैं ,ऐसे मे मजबूरन छात्रों को चपरासी की नौंकरी के लिये भी मारामारी करनी पङती हैं और वोट के बाद मिलने वाले ठेंगा से ही सन्तुष्ट होना पङता हैं । अब जब ये पार्टियां एकाएक छात्रों की हितैंषी बनने लगी हैं तो आश्चर्य की बात तो हैं न । इस मामले पक्ष से लेकर विपक्ष तक सब पर सवाल उठ रहे हैं । सरकार पर सवाल उठ रहें हैं कि जब एचआरङी मंत्रालय को इस मामले की जानकारी थी तब इस मामले पर कार्यवाही क्यों नहीं की गयी और आखिर में जब मंत्रालय के पास एकबार फिर पूरा मामला आया हैं तब वे क्यों एक पक्ष विशेष को बचाने का प्रयास कर रहीं हैं ? और मोदी जी को अचानक क्यों रोहित की याद आई । मोदी जी भी इस मुद्दे के माध्यम से अपना हित साधने का प्रयास कर रहें हैं , तभी तो दादरी पर चुप रहने वाले पीएम साहब को आज रोहित की मौंत का इतना अफसोस हो रहा हैं कि वे भावुक हो गए । सवाल तो विपक्ष पर भी उठ रहें हैं कि हैदराबाद के समय तो वे सब अपना काफिला लेकर तो पहुँच गए पर मालदा के समय इन लोगों की नींद क्यों नहीं टूटी ? ये विपक्षी, कोटा मे आत्महत्या करने वाले छात्रों पर क्यों नहीं कुछ बोलते ? क्या वहाँ के छात्र ,छात्र नहीं हैं ? ऐसे मे सवाल उठने तो लाजमी हैं कि चाहे पक्ष हो या विपक्ष इस समय सब अपना हित देख कर मामले को अपने अनुसार प्रयोग कर रहे हैं और आने वाले चुनाव की जमीन तैयार कर रहे हैं पर वर्तमान परिप्रेक्ष्य को देखें तो पक्ष – विपक्ष इस मुद्दे पर राजनीति से अपने – अपने वोट बैंक को साध कर देश को नुकसान पहुँचा रहे हैं । अगर पार्टियां इस पूरे मुद्दे को एक छात्र की समस्या के रुप मे उठाती तो शायद किसी को इससे कोई परेशानी नहीं होती लेकिन जब वे इस गम्भीर मुद्दे का प्रयोग अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षाओ को पूरा करने के लिए करते हैं और इसे एक जाति विशेष से जोङकर कर उठाते हैं तो ये देश और समाज दोनों के लिए घातक होता हैं । सियासी पार्टियों को भी समझना चाहिए कि हर मुद्दे पर राजनीति करने से जनता का राजनीति के प्रति बढा हुआ विश्वास कम हो जाएगा और इसका खामियाजा उन्हें ही चुनावों मे उठाना पङ सकता हैं इसीलिए कम से कम गम्भीर मुद्दों को गम्भीरता के साथ उठा कर उसे अपनी राजनीति से दूर रखना सीखना चाहिए । इससे मुद्दे की गम्भीरता बनीं रहेगी और मुद्दा अपने निष्कर्ष तक भी पहुँच पाएगा वरना हर बार कि तरफ मुद्दे का बिना कोई निष्कर्ष निकले वह सियासत का शिकार हो जाएगा ।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh