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ये इतिहास बदलकर मानेगें !

हालात की चाल ।
हालात की चाल ।
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आज की राजनीति की स्थिति देखकर एकबार फिर सोचने की जरुरत आ गयी हैं कि हमारी राजनैतिक पार्टियाँ अपना हित साधने के लिए मौका आने पर देश हित से समझौता करने से भी नहीं चूक सकती हैं । आम तौर पर या यूँ कहे कि ट्विटर पर ही हर रोज जैसे कोई न कोई नया शब्द ट्रेड करता हैं उसी तरह हमारे देश में चुनावों के समय भी हर बार कोई न कोई जुमला या नीति ट्रेड करने लगती हैं । इस साल सें शुरु होने वाले चुनावों के साथ एकाएक कई राज्यों में लगातार होने वाले चुनावों का शंखनाद हो चुका हैं । अब जब चुनावों का शंखनाद शुरु हो ही गया तो पार्टियों द्वारा जनता को मूर्ख बनाने और इमोशनल ब्लैक मेल करने का भी शंखनाद भी शुरु हो जाएंगा लेकिन इस बार जनता को मूर्ख एंव इमोशनल बनाने के लिए पार्टियों ने अपना पुराना तरीका छोङ कर एक नया तरीका निकाला हैं । कहने को तो ये नया वाला तरीका नया हैं पर ये तरीका भी पुराना ही हैं क्योंकि इसी तरीके के बल पर अग्रेंजों ने अपने शासन का शंखनाद किया था और ये तरीका हैं – बाँटो और राज करों । लेकिन दुर्भाग्य की बात हैं कि अंग्रेजों ने यह फार्मूला जनता को बाँटने के सन्दर्भ में दिया था पर आज की पार्टियाँ यें फार्मूला महापुरुषों एंव भगवान को बाँटने में प्रयोग कर रही हैं । एकाएक सभी पार्टियों का डॉ . अम्बेडकर और भगत सिंह के प्रति प्रेम उमङ – उमङ कर बाहर आने लगा हैं और पार्टियाँ जनता को बेवकूफ बनाने के चक्कर में एक तरफ तो डॉ. अम्बेडकर जी के नाम का प्रयोग कर दलितों का वोट बैंक साधने का प्रयास कर रहीं हैं तो दूसरी तरफ सरदार भगत सिंह के नाम का प्रयोग कर अपने आप को सबसे बङा देशभक्त साबित करने का प्रयास करने लगी हैं लेकिन वे जनता को बेवकूफ बनाने के चक्कर में खुद बेवकूफ बन रहीं हैं । पार्टियाँ जितनी शिद्दत सें भगत सिंह के नाम को अपना बनाने का प्रयास कर रहीं हैं इतिहास भी उतनी शिद्दत सें भगत सिंह को इन पार्टियों का विरोधी होने का तथ्य पेश कर रहा हैं और ये पार्टियाँ फिर सें इतिहास को भूलाकर अपना नया इतिहास बनाने में लग जा रही हैं । कांग्रेस सरदार भगत सिंह को आपना बता रहीं हैं तो इतिहास के मुताबिक भगत सिंह ने खुद कई मौके पर कांग्रेस का विरोध किया था । जब कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज की मांग उठाई थी तब भगत सिंह ने कहा था कि वैयक्तिक स्वतन्त्रता मिले बिना हम किस आधार पर पूर्ण स्वराज की मांग कर रहें हैं और ऐसे में पूर्णस्वराज कैसे सम्भव हैं ? भगत सिंह से सबसे ज्यादा आत्मयता दिखाने के मामले में भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ तो पहली पंक्ति में खङे होकर अपना राष्ट्र प्रेम दिखाने का एक भी मौका चूकना नहीं चाहते हैं । इन दोनों ने जहां भगत सिंह को पगङी ( वे भी केसरीया रंग की ) पहनाकर उनका एक धर्म विशेष के प्रति झुकाव दिखाने का प्रयास किया हैं तो वहीं दूसरी तरफ भगत सिंह का यह बयान कि अभी तक तो मैनें केवल बाल कटवाए हैं , मैं धर्मनिरपेक्ष होने और दिखने के लिए अपने शरीर से सिखी का एक – एक नक्शा मिटा देना चाहता हूँ । भाजपा की पोल खोलने का काम कर रहा हैं । आजकल जिस तरह राष्ट्रप्रेम के नाम पर भारत माता की जय और वन्दे मातरम बोलना जरुरी माना जा रहा हैं । उसी भारत माता की जय और वन्दे मातरम के नारे को भगत सिंह ने केवल 1928 से पहले तक लगाया था लेकिन बाद में 1928 के बाद भगत सिंह ने अपने संगठन के नाम में सोशलिस्ट शब्द जोङ दिया था और अपना नारा बदलकर इंकलाब जिन्दाबाद एंव साम्राज्यवाद का नाश हो जैसे नारे को अपनाया था । भगत सिंह को साम्प्रदायिक रुप देकर भाजपा और कांग्रेस दोनों अपनी सियासी रोटियाँ सेकने का प्रयास कर रहीं हैं पर भगत सिंह खुद साम्प्रदायिकता के कट्टर विरोधी थे और धर्म के नाम पर राजनीति को गलत मानते थे एंव सामाजिक समानता की बात करते थे । भगत सिंह ने कहा था कि –एक धर्म के अनुयायी दूसरे धर्म के अनुयायियों के जान के दुश्मन बने हुए हैं । अब तो एक धर्म का होना दूसरे धर्म का कट्टर शत्रु होने के समान हो गया है । धर्मों ने हिंदुस्तान का बेङा गर्क कर दिया हैं और अभी पता नहीं कि इस तरह के धार्मिक दंगे भारत वर्ष का पीछा कब छोङेगे ? ऐसे में भगत सिंह की इन बातों को महत्व न देकर पार्टियाँ भगत सिंह के नाम को अपने – अपने तरीके से प्रयोग कर अपने आप को भगत सिंह का सबसे बङा प्रेमी साबित करने का प्रयास कर जनता को धोखा देने के सिवा और दे क्या रहीं हैं ? अगर ये दोनों पार्टियाँ वाकई में भगत सिंह के सिद्दान्तो को इतना ही मानने वाली हैं और उनके सिद्दान्तों को अनुसार काम करने का दावा करती हैं तो उन्हे भगत सिंह के गरीबों , मजदूरों , शोषित वंचित के पक्ष में नीतियाँ बनाने की बात पर ध्यान देना चाहिए । भगत सिंह ने कहा था कि जब तुम एक इंसान को पीने के लिए पानी देने से इंकार करते हो तो तुम्हें क्या हक हैं कि तुम अपने लिए अधिकारों की मांग करों ? अगर पार्टिया भगत सिंह की इन बातों को गम्भीरता से लागू करती हैं तब वे वाकई में भगत सिंह के सच्चे अनुयायी कहलाएगीं क्योकि खुद भगत सिंह जी कहते थे कि मेरे बारे में कम से कम चर्चा करे या बिल्कुल ही न करें क्योकि व्यक्ति की जब तारीफ होने लगती हैं तो उसे इंसान के बजाय देवप्रतिमा – सा बना दिया जाता हैं । उनके इस बयान को पार्टियों को गम्भीरता से लेना चाहिए और महापुरुषों को बॉटने के स्थान पर उनके सिद्दान्तों का अनुसरण कर उस पर काम करना चाहिए लेकिन अफसोस की बात हैं कि वर्तमान में ऐसा होता दिख नहीं रहा हैं क्योंकि पार्टियों में जिस तरह बटवारे की लहर बह रहीं हैं इससे भगवान भी कहाँ बच पाए हैं ! फिर ये पार्टियाँ महापुरुषों का क्या खाक ध्यान रखेंगीं ? उत्तरप्रदेश चुनाव के लिए पार्टियाँ भले ही अभी तक सीटों का पूरा बटवारा भले ही न कर पाई हो पर वे भगवान का बंटवारा पहले ही कर लेना चाहती हैं । भाजपा को आजकल केशव मौर्य में अर्जुन और क्रष्ण दिख रहे हैं तो विपक्षयों में दुर्योधन एंव कौरव दिख रहे हैं तो बसपा को भी मायावती में काली का अवतार दिखने लगा हैं । पार्टियों के इस बँटवारे को देखकर तो अब भगवान को भी अफसोस हो रहा होगा कि कौन सी गलती कर दी थी उन्होने मनुष्य को बनाने या इतनी बुद्दी क्यों दे दी कि आज मनुष्य उनका ही बँटवारा कर रहा हैं ? पार्टियों को अगर वाकई में अपना देशप्रेम साबित करना हैं तो इतिहास के आंकङो को तोङ – मङोकर दिखाने के स्थान पर शहीदों के सिद्दान्तों का पालन करें । खैर अब यें तो पार्टियों कि अपनी रुचि हैं कि उन्हें किस रास्ते पर चलना ज्यादा पसंद ? क्योकि जिस दिन जनता अपनी रुचि के रास्ते पर आ जाएंगी उस दिन पार्टियों को अपनी रुचि बदलनी ही पङ जाएगीं ।

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