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आज कल एक नया विवाद लेकर केजरीवाल ने फिर सें केन्द्र का राजनीति में धमाकेदार एंट्री मारने का प्रयास किया हैं और ये एंट्री इसीलिए भी धमाकेदार एंव विवादित हो जाती हैं क्योकि इस एंट्री का प्रत्यक्ष सम्बन्ध प्रधानमन्त्री मोदी सें हैं और अप्रत्यक्ष सम्बन्ध शिक्षा व्यवस्था सें हैं । केजरीवाल ने इस बार प्रधानमन्त्री मोदी के डिग्री पर सवाल उठाएं हैं और उनका कहना हैं कि पीएम मोदी की डिग्री फर्जी हैं । केजरीवाल ने पहले पीएम मोदी की पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री पर सवाल उठाएं थे , जिसके जवाब में पीएमओं ने पीएम मोदी की पोस्ट ग्रेजुशन की डिग्री को सार्वजनिक किया था । पर शायद केजरीवाल को पीएम की डिग्री सें कुछ ज्यादा ही लगाव हैं तभी तो अब उन्होनें पीएम की ग्रेजुएशन की डिग्री पर सवाल खङे कर दिए हैं और दिल्ली विश्वविधालय पर भी सवाल खङे कर रहें हैं । इस डिग्री विवाद के बीच जब मेडिकल प्रवेश परीक्षा के छात्रों ने केजरीवाल का यह शिक्षा प्रेम देखा तब उनके मन में उम्मीद की किरण जाएंगी कि कोई ते राजनैतिक दल का नेता हैं जो उनके हक में आवाज उठाने के लिए सामने आयेगा पर अफसोस छात्रों की दिन – रात की मेहनत दिखती किसको हैं ? अगर इन छात्रों की समस्या में केजरीवाल या किसी भी अन्य पार्टी को अपना राजनैतिक भविष्य दिखता तो शायद आज इन छात्रों को अपने हक की बात करने के लिए ऐसे बेबस न होना पङता । आमतौर पर जब हम किसी इंजीनियरिंग या मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहें छात्रों को देखतें हैं तो उनकी मेहनत देखकर बङा गर्व होता हैं कि हमारे देश का भविष्य उज्जवल हैं । और उम्मीद जागती हैं कि हाँ , आज भी देश में मेहनत को बल पर बहुत कुछ प्राप्त किया जा सकता हैं पर जब इन मेहनत करने वाले छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाङ किया जाता हैं तब एकबार फिर अहसास होता हैं कि हम भारत की शिक्षा व्यवस्था के बीच रह रहें हैं । इन छात्रों के ऊपर जब उम्मीदों का पहाङ खङा कर दिया जाता हैं तब इन छात्रों को मजबूरन आत्महत्या जैसा बङा एंव अफसोस जनक कदम उठाना पङता हैं ।
हाल ही इंजीनियरिंग के प्रवेश परीक्षा के लिए आयोजि होने वाले जेइई मेन्स का परिणाम आया तो कई राज्यों सें छात्रों के आत्महत्या की खबर आई । पर इस खबर में शायद नेताओं को मीडिया के टाइमलाइन में आने की आशांका कम दिखी होगी तभी तो न मीडिया और न ही नेताओं ने इस खबर को उठाया और न ही इस विषय पर बातचीत करना उचित समझा । इन सब घटनाक्रम के बीच सुप्रीम कोर्ट का 28 अप्रैल को आया फैसला जिसमें कहा गया कि अब एआइपीएमटी के स्थान पर नीट की परीक्षा होगी और सभी प्राइवेट और राज्य स्तरीय मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं पर रोक का फैसला सुनाया गया । ऐसे में छात्रों की स्थिति ऐसी हो गयी हैं कि वे इस समय खुद को बीच मंझधार में फंसा हुए महसूस कर रहें हैं । गौर करने वाली बात तो इसमें यह हैं कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एआइपीएमटी की परीक्षा के सिर्फ 2 दिन पहले आया था और इस बीच छात्रों के बीच दृन्द की स्थिति ऐसी रहीं हैं कि कई छात्रों नें तो परीक्षा ही छोङ दी । सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब नीट की परीक्षा दो चरणों में होगी । पहले चरण की परीक्षा जो 1 मई को हो चुकी हैं इसे फेज वन का नाम दिया गया हैं और दूसरे चरण की परीक्षा मतलब नीट फेज टू 24 जुलाई को होगा और इस परीक्षा को वे सभी विधार्थी दे सकेंगें जिन्होंनें फेज वन की परीक्ष नहीं दी हैं । इन दोनों फेज का परिणाम 17 अगस्त को आएंगा और मेरिट लिस्ट भी अलग – अलग बनने के बजाए एक साथ ही बनेंगी । ऐंसें, में जिन विधार्थियों नें फेज वन की परीक्षा दी हैं वे इस समय खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहें हैं । इन विधार्थियों का कहना हैं कि एक तो फेज टू की परीक्षा देनें वाले विधार्थियों परीक्षा की तैयारी का अधिक समय मिला हैं और मेरिट भी एक साथ बनाई जा रहीं हैं । जिसके कारण उनको कहीं कहीं तो जरुर नुकसान होगा । नीट फेज वन की परीक्षा देने वाले छात्रों की संख्या लगभग साढे छ लाख हैं , और इस फेज वन की परीक्षा छोङने वाले छात्रों की संख्या भी लगभग चालीस हजार हैं । इसमें गौर करने वाली बात यह भी हैं कि जिन छात्रों ने फेज वन का फॉर्म भरने के बाद भी किसी कारणवश परीक्षा स्थल पर लेट पहुँचे थे और परीक्षा देनें से चूक गए थें उन सभी छात्रों को भी नीट फेज टू की परीक्षा देनें का मौका मिलेगा । इस बीच छात्रों के बीच सें सवाल उठाए जा रहें हैं कि अगर इस फैसले को लागू करना ही था तो अगले सत्र सें लागू क्यों नहीं किया गया ? अब तो अधिकांश छात्र प्राइवेट एंव राज्य स्तरीय परीक्षाओं के फॉर्म भर चुके हैं और परीक्षाएं हो भी चुकी हैं । और नीट के जिस फैसले का आधार छात्रों के पैसों की बर्बादी को रोकना हैं , वे पैसा तो अब फैसले के कारण भी बर्बाद हो रहा हैं । इस फैसले के विरोध में कई राज्यों की सरकार भी खङी हो गई हैं । आन्ध्रप्रदेश , तमिलनाडू , महाराष्ट्र , गुजरात आदि राज्यों के सरकार का तर्क हैं कि उनके राज्य में होने वाले स्टेट पीएमटी का सिलेबस नीट के सिलेबस से एकदम लग हैं और साधारणत ; इन राज्यों के छात्र नीट की तैयारी भी नही करते हैं क्योकि वे अपना पूरा ध्यान राज्य पीएमटी की परीक्षाओं पर ही लगाते हैं । ऐसे में ये छात्र केवल 2 महीने के अन्दर कैसे इतने बङे परीक्षा की तैयारी कर सकते हैं और राज्य के छात्रों की प्रवेश परीक्षा ठीक से न होने पर इन राज्यों के छात्रों के भविष्य पर खतरे का बादल मंडरा रहा हैं । पर इन सब समस्याओं के बीच हमारे देश की राजनीति उन छात्रों के भविष्य की तरफ देखनें के बजाय डिग्री विवाद में उलझी हैं तो दूसरी तरफ हेलिकाप्टर पर हाहाकर मचा रहीं हैं और इन सब हाहाकर के बीच देश के भविष्य को उज्जवल करने वाले छात्रों का भविष्य अन्धकार एंव दृन्द में फंसता जा रहा हैं और आज के राजनैतिक शोर में शिक्षा की आवाज दबती जा रही हैं ।
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