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पैरा ओलम्पिक के साथ पैरा जैसा बर्ताव ।

हालात की चाल ।
हालात की चाल ।
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ओलम्पिक खेल दुनिया की ऐसी प्रतियोगिता है जो प्रत्येक देश को उसकी खेल प्रतिभाओं का दुनिया के सामने लोहा मनवाने का शानदार मौका देती है । विश्व के एक देश को दूसरे देश के खेल के क्षेत्र मे हुए विकास को आंकने का मौका प्रदान करती है । इस बार हए ओलम्पिक मे हमारे देश को मात्र दो पदक प्राप्त हुए हैं और इन दो पदको के हासिल करने के बाद देश मे अब तक ऐसा जश्न मनाया जा रहा है मानो हम पूरे ओलम्पिक के आधे पदक हासिल कर लाएं हों । रियो ओलम्पिक मे हमने अपना अब तक का सबसे बड़ा दल भेजा था और उनके साथ उतना बड़ा ही अव्यवस्थाओं का भी बोझा भी भेजा था। खिलाड़ी मेहनत करते रहते है पर जहाँ उन्हे सदस्य दल की जरुरत महसूस होती थी वहाँ अक्सर सदस्य दल लापता पाया जाता था । ऐसे मे खिलाड़ियों की मेहनत का रंग चढ़ते – चढ़ते रह गया।
जितनी उम्मीदो से रियो ओलम्पिक का दल गया था उतनी उम्मीदे वे पूरी नही कर पाएं क्योकि कहीं न कहीं इस उम्मीद पर भारतीय ओलम्पिक दल के साथ गया मैनेंजट दल की अवव्यस्था भारी पड़ गयी लेकिन ठीक इसके विपरीत जितनी कम उम्मीदों के साथ पैरा ओलम्पिक दल को विदा किया गया था वे उससे कई गुणा ज्यादा अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं । पर इस बार भी भारतीय पैरा ओलम्पिक दल के खिलाड़ी बाकी देशों के खिलाड़ियो से जीतकर भी हार गए क्योकि वे पदक तो जीत गए पर देश के लोगो का दिल नही जीत पाएं ।
देश की अधिकांश जनसंख्या ऐसी है जिसको यह मामूल ही नही है कि ओलम्पिक के तुरन्त बाद पैरा ओलम्पिक खेलो का आयोजन किया जाता है । इस बार रियो ओलम्पिक के बाद ब्राजील के रियो डि जेनेरो मे पैरा ओलम्पिक खेलो का शुभाराम्भ हुआ है । इन खेले मे 160 देशों के करीब 4,400 एथलीट हिस्सा लिए हैं । ये पैरा ओलम्पिक खेल 7 से 18 सितम्बर 2016 तक चलेगे , जिसमे 1,621 महिलाओं ने पंजीकरण करवाया है , जो पिछली बार हुए लंदन मे हुए पैरा ओलम्पिक की तुलना मे 12 प्रतिशत अधिक है । पैरा ओलम्पिक मे अब तक भारत 10 पदक हासिल कर चुका हैं जिसमे 3 स्वर्ण , 3 रजत और 4 कांस्य पदक शामिल है । लेकिन भारतीय मीडिया ने पैरा ओलम्पिक खेल के विजाताओं को मात्र 10 मिनट का समय देना ही ठीक समझा और इन पदक विजाताओं के साथ ऐसा व्यवहार किया गया कि माने उनके पदक देश के लिए है ही नही ।
प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया या आजकल सबसे ज्यादा प्रचलन वाली सोशल मीडिया सबने नाममात्र की कवरेज कर अपनी तरफ से खानापूर्ती कर दी । प्रिंट मीडिया ने जहाँ ओलम्पिक विजाताओं के लिए पूरा का पूरा एक पेज समर्पित किया गया था आज वही पैरा ओलम्पिक विजेताओं के लिए ऐक पेज तो दूर ठीक से एक कॉलम भी समर्पित नही किया जा रहा है । इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तो टीआरपी के खेल मे ऐसा उलझा है कि किक्रेट के अलावा उसे कोई और खेल दिखाई ही नही पड़ता और शायद इस बार गलती से ओलम्पिक को कवरेज दे दी इसीलिए पैरा ओलम्पिक की खबरों को मात्र खबरों की दौड़ती स्पीड रेल के डिब्बे मे रखकर दिखाया जा रहा है । कहाँ तो ओलम्पिक के लिए पूरा का पूरा सेट तैयार किया गया था और कहाँ पैरा ओलम्पिक के साथ वाकई मे विकलांगो जैसा व्यवहार किया जा रहा है । हर छोटी बड़ी बात पर चिड़िया को उड़ा देने वाले सोशल मीडिया के माफिर ( तथाकथित सबसे ज्यादा जागरुक नागरिक ) पैरा ओलम्पिक के सम्बंध मे ऐसा बर्ताव कर रहे है कि मानो चिड़िया कितने लम्बे समय से उड़ना भूल चूकी है । पैरा ओलम्पिक मे खिलाड़ियों को बिना देशवासियों के प्रोत्साहन के जब इतने बड़े स्तर पर ( ओलम्पिक की तुलना मे ) पदक जीत सकते है तो ऐसे मे सोचना चाहिए कि अगर उनको भी ओलम्पिक के खिलाड़ियों के जैसा उत्साह दिया जाता तो आज वे 10 की जगह आराम से 20 पदक ले ही आते ।
हर बात के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराकर नागरिकों को अपनी जिम्मेदारी से नही भागना चाहिए। सरकार ने जिस तरह ओलम्पिक विजाताओं को जीतने पर उनको बधाई दी है और उनके लिए पुरस्कार स्वरुप राशि देने की घोषणा की है , वैसा ही वे पैरा ओलम्पिक विजेताओं के साथ भी कर रही है । हालांकि सरकार भी पैरा ओलम्पिक खिलाड़ियों को उतना महत्त्व नही दे पाई है जितना ओलम्पिक खिलाड़ियों को दी थी लेकिन कम से कम सरकार आम नागरिको जैसा भेदभावपूर्ण व्यवहार करके पैरा ओलम्पिक के खिलाड़ियो के पदको का अपमान तो नही कर रही हैं । आज भी समाज का एक बड़ा तबका यह बात सोचता है कि विकलांगता समाज पर अभिशाप हैं एंव विकलांग लोग समाज के लिए कुछ नही कर सकते हैं और वह समाज पर मात्र भार है । समाज को अब बदलते परिवेश के साथ अपने सोच मे व्यापक स्तर पर बदलाव लाना पड़ेगा वरना विकलांगता तो मेहनत कर अपने दम पर सक्षम हो जाएंगी पर समाज सोच से जरुर विकलांग हो जाएंगा ।

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